बादल कितने खुश नसीब है दूर रख कर भी जमीन पर बरसते हैं
हम कितने बदनसीब हैं स्वयं के ही चिंतन को तरसते हैं
परम तपस्वी चतुर्थ पटाधीश आचार्य सुनील सागर महाराज
आचार्य आदि सागर अंकलीकर महाराज के चतुर्थ पत्ताधीश आचार्य सुनील सागर महाराज ने धर्म सभा को संबोधित में बताया करो
मेघ कोसों दूर रहते हैं फिर भी बरस कर धरती से मिल लेते हैं और हम है की आत्मा है हम स्वयं ही फिर भी आत्म चिंतन को तरसते हैं लोगों का झुकाव पृथ्वी की ओर है इसलिए वह पृथ्वी से मिल लेते हैं लेकिन हमारा झुकाव पदार्थ की ओर है इसलिए खुद से ही नहीं मिल पाते हैं
जब तक उपयोग बाहर से ही जाता रहेगा तब तक स्वयं की रुचि कैसे जागेगी जब पर की रुचि भागेगी तब स्वयं की रुचि जागेगी अथवा जब स्वयं की रुचि जागेगी तब उपयोग पर से हटकर स्वयं स्वरूप
में लगेगा
वर्तमान पर्याय में वह शक्ति इस जीव को मिली है कि स्वरूप को समझ कर स्वयं में ही रम जाए निजी ज्ञायक स्वभाव की दृष्टि करने वाला ज्ञान तो खुद में है बस रुचि बदले तो सब कुछ बदल जाएगा ऐसा मुनि ने संबोधित में बताया
आचार्य धर्म सागर धर्म सागर महाराज की जन्म भूमि गंभीरा 112 वा जयंती महोत्सव पर आचार्य सुनील सागर महाराज के शिष्य क्षुल्लक सुप्रकाश सागर महाराज 11 जनवरी को दोपहर को नेमिनाथ तीर्थ तीर्थ क्षेत्र नैनवां से अपार भक्तों के साथ गंभीरा पहुंचेंगे
स्रोत- जैन गजट, 3 जनवरी, 2025 पर:- https://jaingazette.com/param-tapasvi-chaturth-patadhish-aacharya-sunil-sagar/
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2 Comments
James martin
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