गंधर्वपुरी में बहुतीर्थी तीर्थंकर प्रतिमाओं में पंचतीर्थी तीर्थंकर प्रतिमाएँ सर्वाधिक प्राप्त होती हैं। पंचतीर्थी अर्थात् एक ही शिला में पाँच तीर्थंकर प्रतिमाएँ, वे समान हों या किसी एक बड़ी प्रतिमा के परिकर में अन्य चार लघुजिन उत्कीर्णित हों।
गंधर्वपुरी में बहुतीर्थी तीर्थंकर प्रतिमाओं में पंचतीर्थी तीर्थंकर प्रतिमाएँ सर्वाधिक प्राप्त होती हैं। पंचतीर्थी अर्थात् एक ही शिला में पाँच तीर्थंकर प्रतिमाएँ, वे समान हों या किसी एक बड़ी प्रतिमा के परिकर में अन्य चार लघुजिन उत्कीर्णित हों। गंधर्वपुरी में द्वितीय श्रेणी की अर्थात् एक प्रतिमा मुख्य है और चार अन्य लघु तीर्थंकर उसके परिकर में उत्कीर्णित रहते हैं। उनमें से एक सुन्दर प्रतिमा में मूलनायक अर्थात् मध्य की बड़ी प्रतिमा फणयुक्त पार्श्वनाथ की है, उसका परिचय ‘‘रहस्यमयी नगरी की छह पार्श्वनाथ प्रतिमाएँ’’ शीर्षक से हमने दिया है। यहाँ हम पाँच पंचतीर्थी प्रतिमाओं का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं।
प्रथम पंचतीर्थी पद्मासन तीर्थंकर-
सिंहासन में विरुद्धाभिमुख दो सिंह, मध्य में पल्लव सहित पुष्पगुच्छाकृति, उसके ऊपर चरण चौकी, तदोपरि मुख्य पद्मासन प्रतिमा आसीन। पाषाण क्षरित हो जाने से श्रीवत्स स्पष्ट नहीं है, नासाग्र दृष्टि, स्कंधों को स्पर्श करते हुए कर्ण, उष्णीष सहित कुंचित केश और विशाल प्रभामण्डल उत्कीर्णित है। दोनों पार्श्वों में द्विभंगासन में पूर्ण आभरण भूषित चामरधारी देव, उनके ऊपर के भाग में एक-एक पद्मासनस्थ लघु जिन, उनसे ऊपर माल्यवाहक पुष्पवर्षक देव। दोनों तरफ ये देव सपत्नीक उड्डीयमान अवस्था में दर्शाये गये हैं। तदोपरि वितान भाग में छत्रत्रय एवं दुंदुभिवादक भग्न है, छत्रत्रय के दोनों ओर सवारयुक्त गजलक्ष्मी के गज, उनसे पीछे, शिलाफलक के बाह्य भाग में कायोत्सर्गस्थ लघु जिन उत्कीर्णित हैं। इस तरह परिकर में दो पद्मासन लघु जिन, दो कायोत्सर्गस्थ लघुजिन और एक पद्मासन मूलनायक तीर्थंकर प्रतिमा। इस तरह पाँच प्रतिमाएँ होने से यह पंचतीर्थी प्रतिमा है।
द्वितीय पंचतीर्थी पद्मासन तीर्थंकर-
इस प्रतिमा के भी सिंहासन में विरुद्धाभिमुख सिंह हैं, मध्य में धर्मचक्र है, सिंहासन पर वृत्ताकर चरण-चौकी है, जिस पर पद्मसनस्थ तीर्थंकर आसीन हैं, चरण चौकी वृत्ताकार होने से उनके घुटने बाहर निकले हुए हैं। आसन के दोनों ओर यक्ष-यक्षी हैं, किन्तु स्पष्ट नहीं हैं। मुख्य तीर्थंकर के स्कंधों पर सुदृढ केश- लटिकाएँ उत्कीर्णित हैं, जिससे यह आदि तीर्थंकर वृषभनाथ की प्रतिमा प्रतीत होती है।
दोनांे पार्श्वों में चामरधारी देव और उनके समानान्तर बाह्य भाग में एक-एक समपादासन में कायोत्सर्गस्थ लघु जिन उत्कीर्णित हैं। परिकर में उनसे ऊपर माल्यधारी देव-देवी दोनों ओर युगल रूप में हैं। शिरोपरि भग्न त्रिछत्र के ऊपर भग्न दुन्दुभिवादक, उसके दोनों ओर एक एक नर्तकी, तत्पश्चात् गजलक्ष्मी के एक-एक हाथी और उनके बाह्य भाग में एक-एक कायोत्सर्गस्थ लघु जिन उत्कीर्णित हैं। इस तरह परिकर में चार लघुजिन और एक मूलनायक तीर्थंकर होने से ये पंचतीर्थी आदिनाथ जिन प्रतिमा है। संग्रहालय की इसकी परिचय-पट्टिका पर इसका समय 10-11 वीं शती लिखा है।
तृतीय पंचतीर्थी कायोत्सर्गस्थ तीर्थंकर-
इस कायोत्सर्गस्थ खड़ी प्रतिमा प्रतिमा के टेहुनी से नीचे के हाथ भग्न हैं, वक्ष पर श्रीवत्स है, क्षरित होने पर भी सौन्दर्ययुक्त स्मित मुखमण्डल है, उष्णीष उक्त कुंचित केश हैं, चरणों के दोनों ओर चामरधारियों के आगे अंजलिबद्ध एक-एक आराधक बैठा है, चामरधारियों के उपरिम स्थान में एक-एक कायोत्सर्गस्थ लघु जिन उत्कीर्णित हैं। शिर के दोनों ओर एकल माल्यधारी देव हाथों में अविकसित सनाल कमल लिये हैं। वितान में त्रिछत्र, उस पर दुन्दुभिवादक है, उसके दोनों ओर एक-एक पद्मासनस्थ लघुजिन उत्कीर्णित हैं।
चतुर्थ पंचतीर्थी कायोत्सर्गस्थ तीर्थंकर- इस कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा के भी हाथ भग्न हैं। श्रीवत्स सुन्दर और स्पष्ट है। उष्णीष और कुंचित केश अन्य प्रतिमाओं की अपेक्षा बहुत सुन्दरता से उत्कीर्णित किये गये हैं। प्रभावल में पुष्पकलिकाएँ व बाहर से एक परिधि युक्त होने से प्रभावक है। यह अन्य प्रतिमाओं से भिन्न है, इनके दोनों ओर चामरधारी देव हैं, इनके अतिरिक्त वितान से पूर्व परिकर में अन्य आमूर्तन नहीं है, वितान में एक छत्र व दुन्दुभिवादक है, उसके दोनों ओर दो-दो कायोत्सर्गस्थ लघुनिज उत्कीर्णित हैं।
पंचम पंचतीर्थी कायोत्सर्गस्थ तीर्थंकर-
इस प्रतिमा का पादपीठ तो अदृष्ट है, श्रीवत्स क्षरित हो गया है, फिर भी कुछ अवशिष्ट है। उष्णीष रहित केश हैं। छत्र है या फणाटोप रहा है, अधिकांश भग्न व क्षरित हो जाने के कारण स्पष्ट नहीं है। पादपीठ पर दोनों ओर दो चामरधारी द्विभंगासन में सुन्दर आमूर्तित हैं, इनके बाह्य भाग में एक-एक खड़ी हुई स्त्री प्रतिमा है, इनसे ऊपर के परिकर भाग में दो-दो कायोत्सर्गस्थ लघु जिन हैं, ये समानान्तर नहीं बल्कि उपरिम क्रम में हैं। मुख्य प्रतिमा के मस्तक के दोनों ओर युगल-युगल माल्यधारी पुष्पवर्षक देव-देवी हैं, मस्तक के ऊपर मध्य में छत्र, उसके ऊपर मृदंगवादक है। इनके दोनों ओर गजलक्ष्मी का गज है, बांई ओर का गज भग्न हो गया है, जो अदृष्ट है।
स्रोत- जैन गजट, 30 नवंबर, 2024 पर:- https://jaingazette.com/panchtirthi-panch-prachin/
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James martin
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