संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के प्रभावक शिष्य पूज्य श्री पूज्य सागर महाराज ने कहा कि पतंग उड़ने उड़ानें की एक विधि होती है,पतंग को किस दिशा में जाना है,जिसके हाथ पतंग की डोर है उस पर निर्भर करता है।
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मध्यप्रदेश के बुढ़ार नगर में पावस योग चातुर्मास व्यतीत कर रहे मुनि श्री पूज्य सागर महाराज ने गौरेला जैन समाज को संबोधित करते हुए कहा कि सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक की समीपवर्ती समाज होने से गौरेला जैन समाज के कंधों पर बड़ा दायित्व है और उसे वे भली-भांति निभाते भी हैं। गौरेला जैन समाज से बड़ी संख्या में श्रावकों का समूह मुनि संघ से चातुर्मास पूर्ण होने के उपरांत गौरेला नगर पधारने का निवेदन करने बुढ़ार आये थे। महाराज जी ने कहा कि हम सबको भगवान महावीर के संदेश का पालन करते हुए संपूर्ण मानव समाज को जियो और जीने दो के सहअस्तित्व का बोध कराना है।यही वो प्रक्रिया है जिसमें शांति और सौहार्द स्थापित करने की शक्ति है।
महाराज जी ने कहा कि हमने आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के चरण सानिध्य में अमरकंटक और गौरेला पेण्ड्रा में प्रवास किया है।उनके वचनों को लिपिबद्ध करने में पत्रकार वेदचन्द जैन सतत संलग्न रहते थे। इनकी कलम के माध्यम से अनेक सज्जनों का नाम प्रकाशित होता था।मगर हमारे मुख से भी अनेक बार वेदचंद जी का नाम लिया गया है।
इसके पूर्व गौरेला नगर के पत्रकार वेदचन्द जैन ने कहा कि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने गौरेला नगर को सर्वोदय तीर्थ अमरकंटक के अभिनंदन द्वार का नाम भी दिया है और दायित्व भी दिया है। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के द्वारा प्रदत्त इस दायित्व को पूर्ण करने में अतिथि की भी भूमिका है।हमारा काम अतिथि सत्कार का है किंतु अतिथि भी जब हमें इसका अवसर देंगें तब ही हम इसे निभा सकेगें।आज हम सब यहां विराजमान अतिथि मुनि संघ से गौरेला आगमन का निवेदन करते हुए आग्रह करने आये हैं कि हमें अतिथि सत्कार का अवसर प्रदान करें।
स्रोत- जैन गजट, 15 अक्टूबर, 2024 पर: -------
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James martin
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